गिन्नी रिश्ते हेतु सुहागा
1.
कर सकूँ विचरण भावों के पंख दे दो,
भर सकूँ रंग धनु सा गगन निरंक दे दो|
कर डालूँ सराबोर रिक्त भावों से मन,
“मयंक” विमल बुद्धि की सु-तरंग दे दो||
2.
कर दूँ एक टूटे जन प्रेम का रांगा दे दो,
बिखरे रिश्तों के मोती इन्हें धागा दे दो|
गिन्नी की मानिद दुनिया बिखरी है मयंक ,
संस्कारी गहनों के हेतु इन्हें सुहागा दे दो|
✍ के.आर.परमाल ‘मयंक’