गिद्ध…
वाह रे नेता तेरी जात बड़ी सयानी,
जैसी ज़रूरत वैसी हो जाती तेरी बानी |
धरम, करम या रंग, ढंग,सब बदले जाते
ज्योंही नज़र तुझे नये election आते |
तुम सब इक जैसे ही होते हो,
जाने कौन माटी के ढले तुम होते हो ?
सब की होती है बस एक ही कहानी
भाड़ मे जाए दुनिया हमको तो है बस कुर्सी बचानी
न्याय,तंत्र,पुलिस वुलिस के तो तुम अब्बा हो
लोकतंत्र के स्वच्छ पटल पे तुम चमकते धब्बा हो
मन चाहे जैसा रूल बनाते हो
दुनिया को मुँह पर और खुद आँखों पे मास्क लगाते हो !
कहते हो हम जाए धंधे पे तो होता है कोरोना
और अपना ख़ुद का धंधा तो होता है ज़रूरी होना !
हमको कहते हो “दो गज दूरी है ज़रूरी”
और ख़ुद की रैली में लाखों की भीड़ ज़रूरी !
हम ही समझे तो अच्छा है कि जो पकड़ा कीटाणु ने तो
हम तो सूखे सूखे ही चल देंगे,
तुमको क्या ??? तुमको तो बढ़िया hospital में
AC कमरे with डबल सिलेंडर सजे मिलेंगे !
और वैसे भी ये पिद्दा वायरस तुम पे क्या कर पाएगा ?
तुम जैसी मोटी चमड़ी के अंदर कैसे घुस पाएगा ?
और जो घुस भी गया अंदर तो ख़ुद-ब-ख़ुद मर जाएगा
चमगादड़ से तो आया है लीचों, गिद्धो का क्या कर पाएगा !
लीचों, गिद्धो का क्या कर पाएगा ???
रितेश श्रीवास्तव “श्री “