गाली
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प्रजातंत्र के देश में भैया
प्रजा है पर तंत्र नहीं है
देवों के इस देवभूमि में
अंग्रेजीयत है मंत्र नही है।
देखो कैसी दशा यहाँ की
देश वहीं पर भेष नहीं है,
जिसने लूटा कई वर्षों तक
उस इंग्लिश से द्वेष नहीं है
अध्यापक का काम निराला
शिक्षा पर अब जोर कहा है,
विद्यालय भोजनालय बनगये
भोजन पर ही जोर यहाँ है।
माईक देख के मुह खोलता
नेता का वस काम यहीं है,
भाषण देकर पल्ला झाड़े
राशन का कोई काम नहीं है।
यह कैसी मिडिया है भाई
सत्य से जिसका साथ नहीं है,
समाचार चलता है हर दिन
राष्ट्र के हित की बात नहीं है।
धर्माधिष सब बने पाखंडी
धर्म में धन का खेल यहाँ है,
दयावान धनवान बने सब
धन तो है पर दया कहाँ है?
परिवार में वार चल रहा
प्यार तनिक भी शेष नहीं है,
भाई यहां भाई का शत्रु
यह अपना परिवेश नहीं है।
न्यायालय सब न्याय विहीन है
आलय है पर न्याय नहीं है,
सत्य झुका माया के संमुख
सत्य का अब कोई काम नहीं है।
सत्यनिष्ठ से निष्ठा गायब
सदाचार सद्भाव से खाली
राम कृष्ण के इस धरती को
आज ये कैसी मिली है गाली।।
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©®पं.संजीव शुक्ल “सचिन”