गाय-भैंस की तुलना
गाय और भैंस के दूध की तुलना :-
तत्व(1लीटर) / गाय / भैंस ।
1. कैलोरी- / 610 / 970
2. फैट – / एक / दुगना
3.प्रोटीन-कार्बोहैड्रेट – / समान / समान
4.लेक्टोज़ – / 45gm / 53gm
5.पानी – / 88% / 83%
6.बीटा कैरोटीन – / होता है / नही होता।
7.A2Beta casein- / yes / yes
8.देश का कुल दूध – / 20% / 55%
9.संख्या – / 15 करोड़ – / 11 करोड़।
10.दूध की कीमत – / ₹40लीटर / ₹60लीटर
11.अन्य नाम – / गौ माता / काला सोना
– इस उपर्युक्त तुलना को देखते हुए हमको सोचना चाहिए कि गाय धार्मिक रूप से मान्य है तो ग्रामीण भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए भैंस रीढ़ की हड्डी है। क्योकि भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था केवल कृषि पर निर्भर नही बल्कि मिश्रित अर्थव्यवस्था है जिसमें पशु पालन का योगदान भी उतना ही है जितना कृषि का है। इसलिए समाज को और सरकार को गाय संरक्षण के साथ साथ अन्य दुग्ध उत्पादक पशुओं के संरक्षण पर भी उतना ही ध्यान देना चाहिए क्योंकि बिगत सालों में गाय की संख्या में जितना इजाफा हुआ है उतना इज़ाफ़ा भैंस एवं अन्य गुग्ध उत्पादक पशुओं की संख्या में नही हुआ है। जबकि दूध उत्पादन की दृष्टि से भैंस कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है। जबकि राजनितिक स्तर से देखें तो राजीनतिक दल गाय से धार्मिक भावनाएं जोड़ कर लोगों से वोट मांगती है जबकि भैंस व अन्य दुग्ध उत्पादक पशुओं को छोड़ दिया जाता है, अर्थात ग्रामीण अर्थव्यवस्था को वोट के लिए उपेक्षित कर दिया जाता है। जबकि डेंगू और चिकिनगुनिया जैसी बीमारी में बकरी के दूध से बीमार व्यक्तियों को ज्यादा लाभ मिला था। साथ ही दूध उत्पादन की दृष्टि से देखें तो भारत के प्रत्येक व्यक्ति के एक गिलास दूध में आधे से ज्यादा हिस्सा भैंस के दूध का है।
-वहीं दूसरी तरफ शहरों में और गाँवों में गाय और बैलों की जो दुर्दशा है उससे हर कोई परिचित है। जहाँ एक तरफ शहरों में गाय कूड़ा- कचरा प्लास्टिक खाती हुई सड़कों पर बीमार हालत में ट्रैफिक रोके हुए मिल जाती है, वहीं गाँवों में ये किसानों की खड़ी फसलों को तवाह कर रही है और राजनितिक प्रपंच के कारण किसान मजबूर और असहाय हो चुका है अपनी फसल की बरबादी को देखने के लिए। इस तरफ सरकार का कोई ध्यान नही जाता। जब कोई विदेशी पर्यटक गाय को इस हालत में देखता है और किताबो में पढ़ता कि गाय हिन्दू धर्म में पूज्यनीय है तो वह आश्चर्यचकित होता है कि हिन्दू अपने जिस धार्मिक भाव के लिए जाने जाते है उनका प्रायोगिक रूप ऐसा है, तो न चाहते हुए भी हम पाखण्डी श्रेणी में शुमार कर दिए जाते है।
– भावनात्मक आधार पर देखा जाय तो जिससे हमको खाना मिलता है वह सब पूज्यनीय है। इसी आधार पर गांधी जी ना केवल गाय को बल्कि भैंस, बकरी आदि दुग्ध उत्पादक पशुओं को भी माता ही कहते थे। जैसे भैंस माता, बकरी माता इत्यादि। गाँधी जी की किताब ‘मेरे सत्य के प्रयोग’ में यह भली भांति देखा जा सकता है।
– इसलिए धार्मिक महत्व के साथ साथ आर्थिक, सामाजिक महत्व को अनदेखा नही करना चाहिए क्योकि धर्मिक महत्व,आर्थिक एवं सामाजिक महत्व के साथ साथ चलता है, भले ही भवनात्मक दृष्टि से कम क्यों न हो । इसलिए अन्य दुग्ध उत्पादक पशुओं का संरक्षण भी बहुत जरूरी है ।