गायकी: फन या व्यापार
गायकी फन नहीं व्यापार बन गया ,
धनोपार्जन का बाज़ार बन गया ।
ना सोज़ ,ना साज न वो कशिश ,
गला फाड़कर चिल्लाना हुनर हो गया ।
भावों की गीली सोंधी मिट्टी में सने होते थे शब्द ,
भाव तो हो गए गुम ,
द्वि-अर्थी शब्दों में अश्लीलता और अपशब्दों का ,
समावेश हो गया ।
न उर्दू की तहजीब न हिन्दी साहित्य के संस्कार ,
देखो !किस तरह से संगीत का मान हनन हो गया ।
ये नामुराद पाश्चात्य शैली कहाँ से आ गयी !,
इनके शोर में हमारा भारतीय संगीत
सदा के लिए मौन हो गया ।
हमें तो याद आते हैं अब भी ,
हमारे दिग्गज महान अमर कलाकार ,
माँ शारदे के इन सपूतों को याद कर
यह गला हमारा रुँध गया ।
हमारे देश की पवित्र स्वर्गिक निधि को छोड़,
गैरों के थूके को चाटना नई पीढ़ी का ,
अब तो चलन बन गया ।
अब कौन इन्हें समझायेऔर कौन राह दिखाए ?
अब बुजुर्गों का स्वर नक्कारखाने में ,
बजती तूती सा हो गया।