*गाते हैं जो गीत तेरे वंदनीय भारत मॉं (घनाक्षरी: सिंह विलोकि
गाते हैं जो गीत तेरे वंदनीय भारत मॉं (घनाक्षरी: सिंह विलोकित छंद)
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गाते हैं जो गीत तेरे वंदनीय भारत मॉं
तुझ पे चढ़ाने शीश हँस-हँस जाते हैं
जाते हैं जो सरहद पर युद्ध करने को
काल-महाकाल जो कि खुद ही बुलाते हैं
बुलाते हैं जो अमृत कलश बलिदान दे के
देश को स्वतंत्र जिस कारण ही पाते हैं
पाते हैं चरणधूलि ऐसे सैनिकों की जब
देशभक्त धूलि वह शीश में लगाते हैं
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा रामपुर उत्तर प्रदेश मोबाइल 9997615451