गांव
मैं तेरा गांव ,तेरा ठौर ठाँव छोड़ दिया तूने मेरे पीपल कि छाँव ।!
छोड़ दोस्तों के प्यार ,अपनों का विश्वाश का नाम मैं तेरा गांव।
कहाँ चला गया ,भीड़ में खो गया खोज रहा रहता परेशान!!
लगाता गुहार, नक्कारखाने कि तूती जैसी गूंजती तेरी आवाज़ !
नहीं सुनने वाला तेरी आवाज़ नहीं देता तेरी समस्या का कोई निदान!!
तेरे शौख का शहर महा नगर को नहीं तेरे दर्द का आभास।
जब तू हुआ पैदा हुआ मेरे दामन के आँचल में माँ कि कोख ,गोद में रखा था पहला कदम मेरे चमन में आई थी बहार छाई चेहरों पे मुस्कान । ।।
मैं तेरे वात्सल्य कि किलकारियों का आँगन ,मनभावन ,प्यारा गांव माँ बाप कि आशाओं कि धरती आसमान का मैं तेरा गाँव।
मेरा नाम करेगा रौशन था मेरा विश्वाश तेरी पैदाइश कि ख़ुशी में थालियों के थाप पर नाचा था तू मेरी इरादों कि आशा था ।।
मेरी खामोश नज़रों ने देखा है तेरी बचपन कि शरारते ।
बारिश के पानी में कागज़ का नांव मेरी गलियो में गिल्ली डंडे का खेलना लड़ना झगड़ना।
तेरा तितलियों से खेलना सुबह शाम रूठना ,मनाना, हंसी ,ठिठोलीआँख मिचौली के आंसू मुस्कान।
मेरी ही पाठशाला का तू विद्यार्थी मेरी विरासत कि संस्कृति संस्कार का तू धरोहर मैं तेरा गांव।।
मेरी ही माटी के खेत खलिहान बाग़ का तू सूरज चाँद का मैं तेरा गावँ।।
मुझे इल्म ही नहीं कब खो गयी तेरी बचपन कि शरारते हो गया जवानहो गया पराया भूल गया गांव मेरे सादगी, निर्मल ,निश्छल आँचल कि छाँव।।
मैं तो अपनी हर संतान कि मस्ती माहौल का गावँ मेरी आँखों का तारा ,दुलारा, लाड़ला मेरा अभिमान मैं तेरा गांव तेरी पहचान
कब हो गया ,बेगाना मेरी माटी लाल।
हमारे ही आँचल कि लाज तू कैसे हो सकता प्रवासी । तेरी सांसो धड़कन प्राण का मैं तेरा प्यार प्यारा गाँव।।
अब लौट आ अपनी बचपन कि दुनियां शरारतों के साथ ।
बाहें फैलाये गले लगाने का कर रहा हूँ तेरा इंतज़ार तू मेरी दुनियां दिल, दौलत मै तेरा गावँ।।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर