गांव में बहू शहर की आई
गांव में बहु शहर की आई
करती नहीं किसी का पर्दा है अलमस्त लुगाई
गिटर पिटर अंग्रेजी बोले, जीजी कछु समझ न पाई
अपने धन्ना की परजाई
जाने नहीं कुछ चूल्हा चौका, करे न गोबर बाई
सास ननदिया बोल न पाबें, गुस्सा रहीं दवाई
ससुरा देवर जेठ जेठानी फूली नहीं समाई
शर्त रखी आने से पहले सुविधा घर दियो बनाई
स्कूटर से भरे फर्राटा, शहर घूमने जाई
घर परिवार भी सुधर गए हैं, बीड़ी सिगरेट छुड़ाई
बाल बच्चों को पढ़ा रही है, करवाती साफ सफाई
खुश हैं गांव की नई छोरियां, भाभी दबंग है आई
तोड़ दीं सारी कुप्रथाओं को, नई पीढ़ी हरषाई
बहना आया नया जमाना, अब न डरे लुगाई
सदियों से शोषित थी महिला, अब और सही न जाई
नवयुग नव इतिहास लिखेंगी, है आज की नारी भाई
सुरेश कुमार चतुर्वेदी