गांव को
इस शहर में ,हर कदम पर
खोजता हूं, गांव को।
खेत की हरियालियों को
बड़गदो के छांव को।
खेत के दलदल के हमने
हां कभी मिट्टी में लेटा।
ख़्वाब थी मेरी सभी जो
अपनी गमछी में समेटा।
और आया मैं यहां पर
इक नई सी ख्वाब लेकर
ख़्वाब खोया जिस शहर में
उस शहर के हर गली में
खोजता हूं, गांव को
खेत की हरियालियों को
बड़गदो के छांव को।
इस शहर में ,हर कदम पर
खोजता हूं, गांव को।
खेत की हरियालियों को
बड़गदो के छांव को।
दीपक झा रुद्रा