गांव का बचपन
क्या मजबूरी थी जो साथ तूने मेरा छोड़ा
ये सूना-सूना सावन तुझ बिन भाता नहीं
नाराज क्यों हैं बादल जाकर पूछना कभी
झूमता हुआ सावन अब क्यों आता नहीं
टिप-टिप बरसता बारिश का सुथरा पानी
अमुवा की डाल पर सावन का वह झूला
बचपन याद कर हवा के वह शीतल झोंके
आसाढ़ की वह शाम मैं अब तक न भूला
खुद को संवारने गांव से शहर निकल पड़े
छोड़कर गेहूं की लहलहाती सुनहरी बालियां
खेत खलियान पीली सरसों पीछे छूट गए
हमारी इंतजार में थक गई नीम की डालियां