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30 Apr 2023 · 3 min read

गांधी से परिचर्चा

एक दिन
नजर बचाकर
राजघाट जाकर
मैंने
अलख जगाया
तभी लाठी व लंगोटी वाला
एक बूढ़ा सम्मुख आया
उसकी आंखों पर चश्मा चढ़ा था
वह काठी में पतला और कद में बड़ा था
पहले तो मैं समझा कि वह एक भिखारी है
पर नजदीक बढ़ने पर जाना कि वह
अहिंसा का पुजारी है
जी हाँ
जिस के संबंध में मैं बचपन में पढ़ा था
सत्यवादी होने का मंसूबा गढ़ा था
सत्य अहिंसा के पथ पर चला
चलते हुए जब जूते खाया
विचारधारा में बदलाव आया
आज उससे कट के हूँ
थोड़ा हट के हूँ
अब मैं झूठ फरेब वह मक्कारी का
खाने का आदी हो गया हूँ
जी हाँ
अब मैं अवसरवादी हो गया हूँ
इससे पहले कि मेरा दिमाग
यादों का दूसरा पुलिंदा खोले
अपने छड़ी के सहारे झुके महात्मा बोले
बॉस तुम्हें क्या हो गया है
किन विचारों में खो गया है
मैं जानता हूँ कि तुम मुझे जानता है
राष्ट्रपिता के रूप में पहचानता है
यह तुम जानो की तुम्हें कितना भाया हूँ
मैं तो बस अपने बच्चों और
अपने देश की दशा देखने आया हूँ
माफ करना यदि हो गई हो कोई खता
मुझे इक्कीसवीं सदी के भारत के संबंध में बता
बापू ने जब मेरे सिर पर हाथ फेरा
प्यार से पुचकारा
मैं आँसू के साथ फफक पड़ा
फिर भी दहाड़ा―
बापू आपने आजादी की लड़ाई लड़ी थी
दिल में राष्ट्र-प्रेम अनलेखा था
रामराज्य का सपना देखा था
वह सपनों का महल ढह गया है
केवल बालू रह गया है
आज के राजनेता अपने कुकर्म पर
तनिक भी नहीं शर्माते हैं
स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस को पीछे छोड़
थू-थूकार दिवस व धिक्कार दिवस मनाते हैं
इतना सुनते ही बापू
अपनी आंखों को और चौड़ाई में खोलें
फिर बोले― थू-थूकार दिवस
व धिक्कार दिवस का मतलब
मेरे समझ में नहीं आया
यह सब क्या है भाया
मैंने कहा
इसी दिन तो जन्मी थी माया
गांधीजी इतना सुनकर मुस्कुराए
बात आगे बढ़ाए
यह सब जानने के बाद भी
तू कहता है देश अभागा है
विकास की दौड़ में
आगे नहीं पीछे भागा है
अरे माया तो महा ठगिन है
जब भी जगेगी
ठगती आई है― ठगेगी
आज मैं कितना खुश हूँ
मेरा देश माया को दुत्कार रहा है
उसके जन्मदिन पर थू-थूकार रहा है
यह किस को नहीं हर्षाएगा
अरे! माया दुत्कारी जाएगी
तभी तो राम-राज आएगा
बाबा को भूलता-भटकता देख
मैंने माथा-पीटा
भर्राया
लपक कर चरणों में आया―
बाबा विडंबना है या बिधना का लेखा है
आपका यह बंदा कुछ दिन पहले
रामराज भी देखा है
ऐसे दिनों में जन समुदाय
हिरण नहीं कंगारू हो जाता है
और कलयुग का लक्ष्मण
बंगारू हो जाता है
इतना ही नहीं
राम अपनी सुविधा अनुसार
कथानक को मोड़ देता है
वह रावण का वध नहीं करता
सीधे कंधार ले जाकर छोड़ देता है
बाबा बोले हे भोले―
वाह!
कितनी अच्छी राह!
मैं अपना दिल टटोला
आँखों में आँसू लिए
हँसते हुए बोला―
बापू
आपने सत्य अहिंसा का पाठ पढ़ाया
बस सड़े टमाटर व अंडे ही नहीं
सीने गोली तक खाया
किंतु अब स्थिति कुछ और है
काबिले गौर है
बम है
बमबारी है
आज अहिंसा
दया या शोक नहीं लाचारी है
गांधी को अब अवाक देख
उस मुद्दे को वहीं छोड़ दिया
बात को पहली तरफ मोड़ दिया
आज लोग आजाद हैं
उनके सभी राह खुले हैं
सब अपने आप को नीच बनाने पर तुले हैं
यह किसी भी देश के लिए
घातक लक्षण है
इसका कारण और कुछ नहीं
सिर्फ आरक्षण है
आपने जिन अछूतों को
हरिजन पुकार कर गले लगाया था
देश के कर्णधारों ने
उनके उत्थान हेतु
कुछ विशेष नियम बनाया था
आज वही हरिजन
बहुजन हो गए हैं
फिर भी एक जैसे नहीं हैं
कुछ की हालत
अब भी दयनीय है
कुछ सही हैं
शेष जो हैं
मत पूछिए कैसे जी रहे हैं
वे राजनीति कर रहे हैं
और जनेऊ से जूते सी रहे हैं
इसलिए कहीं थू-थू है
कहीं धिक्कार है
नए-नए योगी हैं
नया त्यौहार है
इतना सुनते ही गांधी
ना जाने किस दुनिया में खो गए
मैं खड़ा देखता रहा वह पत्थर हो गए
तभी पानी का एक छपाका मेरे ऊपर आया
मैं हड़बड़ाकर संभला
खुद के बिस्तर पर पाया
अब मेरे सम्मुख
समस्या बड़ी थी
खाली बाल्टी हाथ लिए
पत्नी खड़ी थी
मैं कांप रहा था
सिर पर हाथ फिराकर बोली―
अरे ओ मेरे हमजोली
ना जाने कहाँ-कहाँ भागते रहते हो
सोए में भी जागते रहते हो।

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