गाँव
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बूढ़ा बड़गदऔर पीपल का छाँव ।
गंगा किनारे मेरा छोटा – सा गाँव।
कच्चे पक्के घर छोटी सी बस्ती।
कलकल करती झरनों की मस्ती।
चारो तरफ खेतों की हरियाली।
प्राकृतिक सौंदर्य की शोभा निराली।
कुएँ के सामने छोटा सा शिवालय।
गाँव के बाहर अस्पताल व विद्यालय।
देवी देवताओं में उनका अटुट विश्वास।
झार-फूक,जादू-टोना में अंधविश्वास।
भोले-भाले लोग खुला आकाश।
धर्म की भावना,मनुष्यता का प्रकाश।
नहर,कुआँ,तलाब एवं ट्यूबवेल।
नदी किनारे खेलते बच्चों का खेल।
पीले-पीले फूलों से भरे सरसों का खेत।
गंगा-किनारे काली मिट्टी और रेत।
फल से भरे हुए छोटे-बड़े पेड़।
टेढे-मेढे बाँधे हुये खेतों पर मेढ़।
गाँव की मीठी-मीठी मधुर बोली।
पनघट पे पानी भरते गोरियों की टोली।
उबर-खाबर संकरी,टेढी-मेढी पगडंडी।
संग सखियाँ गोरी के माथे पे गगरी।
मदमस्त करती खुश्बू महुआ की।
गोरी लगाती बालों में फूल चंपा की।
बजती घंटियाँ गले में गायों की।
गड़ेरिये संग झूंड भेड़-बकरियों की।
गाँव का मेला,ट्रक्टर की सवारी।
कच्ची सड़क पर चलती बैलगाड़ी।
वो सोंधी-सोंधी गाँव की मिट्टी।
सायकिल पर आते डाकिये की चिट्ठी।
मक्के की रोटी,सरसों का साग।
सुबह सबेरे-सबेरे मुर्गे का बाँग।
देशी-घी में डूबा लिट्टी-चोखा।
गरमा-गरम दूध से भरा लोटा।
बुजुर्गों की बैठक,गाँव का चौपाल।
सुन्दर कमल से भरा हुआ ताल।
वो फगुआ,सोहर,गीत और मल्हार।
गाँव का रस्मों-रिवाज वो स्नेह-सत्कार।
मिट्टी के चूल्हे हम नहीं भूले।
नदी किनारे सावन के झूले।
कच्ची अमियाँ,खट्टे-मीठे बेर।
बाड़े में भूसे और पुआल का ढेर।
सीधा-साधा सच्चा जीवन।
गाँव मेरा है सबसे पावन।
?????? —लक्ष्मी सिंह?☺