“गाँव तेरी याद आती हैं”
जहां बारिश की बूंद
गिरते ही मिट्टी की ,
सौंधी-सौंधी खुशबू
हवा में बिखर जाती है ।
जहां घर आंगन में
चिड़ियाँ नित् ,
गीत सुनाती है
गांव हमें ,
तेरी याद आती है ।
जहां गर्मी में
तपती है धरती
जलते हैं पाँव ,
कितना अच्छा
लगता है ,
पीपल का छांव ।
जहां जाड़े की
ठिठुरन भरी रातें ,
अलाव के पास
बैठकर करते है ,
ढेर सारी बातें ।
जहां हर त्यौहारों
पर महिलाएं ,
गीत गाती हैं ।
गांव हमें
तेरी याद आती है ।
जहां भोर होते ही
बजने लगती हैं ,
मंदिरों की घंटियाँ
और वातावरण में ,
घोल देती है ,
एक संगीत ।
जहां मस्जिद की ,
अजान हमें जगाती है ।
गांव हमें ,
तेरी याद आती है ।
जहां त्योहारों
के दिन हो ,
या सादी की रातें ,
कितना अच्छा
लगता है आपस
का मेलजोल ,
और प्रेम भरी बातें ।
जहां धरती
सात रंगों से ,
जीवन सजाती है ।
गांव हमें ,
तेरी याद आती है ।
सुनील पासवान कुशीनगर
*** 29/06/2021***