#ग़ज़ल-42
# ग़ज़ल#
वज़्न 212-212-212-212
आज फिर याद आई मुझे गाँव की
प्यार के मेल की खेल के ठाँव की/1
यार मिलते गले चार पीपल तले
मौज मस्ती हँसी छोड़ते दाँव की/2
दूर थे वैर के भाव से एक हम
प्यार ही दौड़ थी हर उठे पाँव की/3
मान माँ-बाप का शान खुद की लिए
माँगते थे दुवा प्रीत की छाँव की/4
जो मिला राम का नाम लेकर चले
बोल कोयल बने ना कभी काँव की/5
देखके ये शहर गाँव जँचता हमें
प्रीत प्रीतम नहीं है यहाँ भाव की/6
आर.एस.”प्रीतम”