गाँव की गली
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गाँव की गली।
गुड़ की डली।
मैं शहर की छली।
अप्रिय सत्य में ढली।
दारिद्रय में हुई गली।
बिखरी गली-गली।
सूर्य किरण से जली।
चाँद की रौशनी से दहली।
प्रकृति के पास पली।
एकाकी जीवन का एकांत।
कोई हलचल नहीं
मेरे जीवन में सब कुछ शांत।
मेरा जीवन
हताश,निराश नितांत।
मन
अनिश्चितता से उद्भ्रान्त।
मेरी प्रकृति और मैं गाँव।
क्यों इतना ठिठका हुआ है
मेरा पांव!
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