गाँधी जी की लाठी
माधव जी का शरीर दर्द के मारे बुरा तरह दुख रहा था क्योंकि मोहल्ले के दबंगों ने उनकी जमकर पिटाई की थी। बेचारे कुछ नहीं कर पाए थे, जबकि लाठी उनके हाथ में थी। दवाई खाने के बाद दर्द से थोड़ा आराम मिला तो झपकी लग गई। सपने में गाँधी जी आए और बोले, “क्या हुआ माधव जी? आपके पास तो लाठी थी फिर भी पिट गए।”
माधव जी ने कराहते हुए बापू जी से कहा,” क्या करता बापू, मैं तो आपका अनुयायी ठहरा। अहिंसा के मार्ग पर चलने वाला।”
” पर आपके पास लाठी थी, आत्मरक्षा के लिए उसका प्रयोग क्यों नहीं किया?” बापू ने फिर पूछा।
“अरे बापू! लाठी तो मैंने सहारे के लिए ले रखी थी। आजकल घुटनों का दर्द कुछ ज्यादा ही परेशान कर रहा है”, माधव ने उत्तर दिया।
माधव जी,” लाठी अगर चलने के लिए सहारा है तो आत्मरक्षा का एक साधन भी है। आपको उसका प्रयोग करना चाहिए था।आपने तो अहिंसा के नाम पर उन गुंडों का विरोध तक नहीं किया,” बापू ने कहा।
माधव जी,” अब वे जमाने गए, जब लोग अहिंसा को व्यक्ति की एक खूबी के रूप में देखा जाता था।आज तो लोग उसे कमजोरी मानते हैं और कमजोर लोग मुझे अच्छे नहीं लगते,” बापू ने समझाया।
गाँधी जी की बात सुनकर माधव जी की आँख खुली तो उनके शरीर में एक अलग -सी स्फूर्ति थी। उनका दर्द गायब था और वे ऊर्जा से भरे हुए थे क्योंकि उनके हाथ गाँधी जी की लाठी आ गई थी।
डाॅ बिपिन पाण्डेय