ग़रीबी या अमीरी हो किसी से।
गज़ल
काफिया- ई
रदीफ़- से
1222……..1222……..122
ग़रीबी या अमीरी हो किसी से।
नहीं डरना कभी तुम मुफलिसी से।
नहीं जो हो सका पैसे से हासिल,
वो हासिल हो सका है बंदगी से।
रही दुनियां सदा दौलत के पीछे,
नहीं कोई बचा इस तिश्नगी से।
तमन्ना है सभी के काम आएं
सभी को जल मिला है ज्यों नदी से।
मेरा जब चांद ही मुझसे है रूठा,
करें शिकवा तो कैसे चांदनी से।
नहीं है इल्म उसको मैं हूं प्रेमी,
मैं उसको प्यार करता हूं कभी से।
…….✍️ प्रेमी