ग़म भी रख लिया करो
खुशी खुशी तमाम ग़म भी रख लिया करो
कोई खुशी से दे तो कम भी रख लिया करो
हर चीज़ में अपना फायदा नहीं देखा जाता
कभी इंसानियत का भरम भी रख लिया करो
दर दर की खाक छानते फिरते हो जमाने में
कभी हमारे कूचे में कदम भी रख लिया करो
हमेशा दूसरों के जख्मों को कुरदते रहते हो ‘अर्श ‘
किसी के जख्मों पे मरहम भी रख लिया करो