ग़म के सागर में
किस्तियो का
लहराना खलता है
मन रूपी सागर में
उथल पुथल मच जाती है
दर्द होता है विचारों में
यूं ही रैना बीत जाती है
विचारों के भवसागर में
फंस कर उधेड़बुन में
यूं ही यादों का जिक्र होना
स्वाभाविक है दर्द होता है
तिनके ज्यों बिखर जाता है
मन अशांति की ओर चला जाता है
दोनों के मिलन में खलल पैदा होना
डगमग मन भावो के चक्रव्यूह में फंसकर
आत्मविश्वास गँवा बैठता है।