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3 May 2024 · 1 min read

ग़म के सागर में

किस्तियो का
लहराना खलता है
मन रूपी सागर में

उथल पुथल मच जाती है
दर्द होता है विचारों में

यूं ही रैना बीत जाती है
विचारों के भवसागर में

फंस कर उधेड़बुन में
यूं ही यादों का जिक्र होना

स्वाभाविक है दर्द होता है
तिनके ज्यों बिखर जाता है

मन अशांति की ओर चला जाता है
दोनों के मिलन में खलल पैदा होना

डगमग मन भावो के चक्रव्यूह में फंसकर
आत्मविश्वास गँवा बैठता है।

Language: Hindi
1 Like · 85 Views
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