ग़ज़ल 8
वो धड़कनों में बस गए हैं जान की तरह
जो दिल में आए थे कभी मेहमान की तरह
जज़्बात की हमारी ज़रा क़द्र भी करें
बस इस्तेमाल मत करें सामान की तरह
मुझसे वो रू-ब-रू हुए जब मुद्दतों के बाद
कैसे झिझक रहे हैं तब अनजान की तरह
कोई चुरा न ले कहीं दिल आपका सनम
मुस्तैद हम तो बैठे हैं दरबान की तरह
वो ख़्वाब था, वो टूट गया, फिर भी क्या करें
जज़्बात हैं मचल रहे अरमान की तरह
किरदार तो बहुत हैं मेरी दास्तान में
पर आप का वजूद है उनवान की तरह
यह जग पड़ाव ज़ीस्त का बस दो घड़ी का है
दाइम समझ न तू इसे नादान की तरह
बाहर से तो हरा दिखे, तासीर लाल है
कुछ हुस्न का मिज़ाज भी है पान की तरह
वो मुल्क के वज़ीर हैं तो क्या हुआ ‘शिखा’
क्या प्यार भी करेंगे वो फ़रमान की तरह