ग़ज़ल
दर्द के किस्से सुनाता आदमी
जा रहा है मुस्कुराता आदमी
आँख से आँसू छलकते है भले
होठ से पर गुनगुनाता आदमी
साँस भी मजबूरियों की ले रहा
ज़िन्दगी का ज़हर खाता आदमी
इत्मिमानों के कई चेहरे लिए
रूह से है छटपटाता आदमी
मंजिलों की चाह में यूँ भटकता
ख़ुद से जाता ख़ुद में आता आदमी
नफरतों से जल रहे ज़ुबां मगर
प्यार के नगमें सुनाता आदमी
हमको लगता है महज़ इस दौर में
लूटता ख़ुद को लुटाता आदमी