ग़ज़ल —
ग़ज़ल —
क़ाफिया –अर की बंदिश
रदीफ–अकेले
बहर –122-122-122-122
सादर समीक्षार्थ —
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जिएँ लड़कियाँ अब न डरकर अकेले।
बढ़ी शान दुनिया में चलकर अकेले।।
न होते यहाँ रहनुमा आप मेरे।
लगाते नहीं हम यूँ चक्कर अकेले।।
भले आदमी काटते रोज जंगल।
बनेगी ज़मीं आप बंजर अकेले।।
यहाँ जल बिना सूखते नद सरोवर।
पढ़ो आप पानी का मंतर अकेले।।
सड़ी गर्मियाँ जान लेने लगी है।
चलाती हवा लू का हंटर अकेले।।
बढ़ाएं हिफाज़त जमीं आग पानी।
महकने लगें फिर तो मंज़र अकेले।।
मिलो खोल ‘सीमा’ दरीचे दिलों के।
भटकते फिरोगे न दर-दर अकेले।।
✍️ सीमा गर्ग ‘मंजरी’
मौलिक सृजन
मेरठ कैंट उत्तर प्रदेश।