ग़ज़ल
नज़र ही नज़र है , नज़र हर तरफ़ है ।
भँवर ही भँवर है , भँवर हर तरफ़ है ।
यहाँ रात-दिन,रोज़ आठों पहर तक,
सफ़र ही सफ़र है , सफ़र हर तरफ़ है ।
नज़ाकत को लूटा है फिर भेड़िये ने,
ख़बर ही ख़बर है , ख़बर हर तरफ़ है ।
सियासत से नफ़रत की निकलीं हवाएँ,
असर ही असर है , असर हर तरफ़ है ।
कि भाँड़ों, नटों, मसखरों की जहाँ में ,
गुज़र ही गुज़र है , गुज़र हर तरफ़ है ।
अगर कुछ है “ईश्वर” ख़ुदा के जहाँ में,
हुनर ही हुनर है , हुनर हर तरफ़ है ।
– ईश्वर दयाल गोस्वामी ।