ग़ज़ल
जिंदगी उतनी ही हमारी है ।
आपके साथ जो गुज़ारी है ।
शा’इरी है मेरे लिए मंदिर,
और उसका ये दिल पुजारी है ।
लोग बेकार शक किया करते,
रूह निर्दोष है , कुँवारी है ।
तीन तालों के मध्य जो बसता,
गाँव मेरा वही छिरारी है ।
एक ही दूध पी पले, लेकिन
आज रोटी बने न्यारी है ।
००
—- ईश्वर दयाल गोस्वामी ।