ग़ज़ल
बैठकर ग़म ही में ख़ाली बस न कुढ़ना चाहिए
ज़िन्दगी को दूसरी जानिब भी मुड़ना चाहिए,
दुःख भी साझा हो सके और सुख भी साझा हो सके
आदमी को आदमी से ऐसे जुड़ना चाहिए,
जो तुम्हारी अहमियत को अहमियत देते नहीं
किसलिए इन सिरफिरे लोगों से भिड़ना चाहिए,
हो सहल और चल सके हर आदमी आराम से
एक-दूजे के लिए थोड़ा सिकुड़ना चाहिए,
ज़िंदगी का फलसफ़ा इससे ज़ियादा कुछ नहीं
कल की ख़ातिर आज से हमको बिछुड़ना चाहिए।