ग़ज़ल
दुवा बदली न बदला हो ख़ुदा जिसने हँसा होगा
बदल ख़ुद को मगर देखा तभी चेहरा खिला होगा/1
निराशा को निकाला और आशा को बसाया है
अँधेरा घोर जीवन का तभी छूकर टला होगा/2
तिरे ही प्यार में पागल हुआ इतना भुलाया जग
मुहब्बत का हृदय लेकर कोई दीपक जला होगा /3
छिपाओ मत बताओ सच तभी होगी खरी चाहत
मिली मंज़िल उसे धुन में सही होकर चला होगा/4
यहाँ पहलू बनें दो चीज़ हर के हैं सुनों सोचो
मिला उसको बड़ा सुख जो यहाँ दुख में पला होगा/5
किसी भी रूप में ढ़ालो ढ़लेगा प्यार से हँसकर
अगर लोहा सुहाती आग में तपकर गला होगा/6
समझ क़ीमत उसे उस चीज़ की मालूम होती है
जिसे चाहा हृदय से हाथ ‘प्रीतम’ पर मला होगा/7
आर.एस. ‘प्रीतम’
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