#ग़ज़ल
#ग़ज़ल
■ रह गई ठहर कर…।।
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【प्रणय प्रभात】
★ मिलता अवसर, बनते अफ़सर।
आज भटकते हैं जो दर-दर।।
★ बिछा दिए, क़दमों में कांटे।
कहा वक़्त ने, और सफ़र कर।।
★ वक़्त के घोड़े, जम कर दौड़े।
एक घड़ी, रह गई ठहर कर।।
★ सांसो का सच, जान गया जो।
भला जिएगा, क्यूं डर-डर कर?
★ सारी दुनिया, बसा ज़हन में।
तू भी तो, इक दिल में घर कर।।
★ इनको भी, मंज़िल मिल जाती।
रहज़न अगर, ना बनता रहबर।।
★ मुट्ठी बांध, सिकन्दर आया।
आख़िर रह गए, हाथ पसर कर।।