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21 Feb 2024 · 1 min read

ग़ज़ल

अगर तुम साथ होती तो सफ़र आसान हो जाता ।
गुनाहों से निकल शायद मैं फिर इंसान हो जाता ।

नहीं मिलती ज़माने में दिलों की बस्तियाँ उजड़ी,
मोहब्बत का उधर से भी अगर ऐलान हो जाता ।

मसीहा वो मेरे दिल का वो मुंसिफ रहनुमा भी है,
मेरी यादों में रहता, साथ होता ज़ान हो जाता ।

कहूँ कैसे सभी से मैं बहुत बेचैन रहता हूँ ,
मिलीं जो रोज़ ख़बरें उनसे मैं अंजान हो जाता ।

सुना “अरविन्द” ने दिल मुस्कुराता है मोहब्बत में,
अगर बहते न आँसू आँख से बेजान हो जाता ।

✍️ अरविन्द त्रिवेदी
महम्मदाबाद
उन्नाव उ० प्र०

Language: Hindi
72 Views
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