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18 Jul 2018 · 1 min read

ग़ज़ल

ठोंकरें खाके जो राहों में संभल जाते हैं।
ऐसे ही लोग बहुत दूर निकल जाते हैं।।

सैंकड़ों में से कोई एक बुझाता है शमआं।
बाकी परवाने तो शमआं से ही जल जाते हैं।।

जानते हैं कि क्या अंजाम-ए-मुहब्बत होगा।
कुछ लोग फिर भी जवानी में फिसल जाते हैं।।

फर्क पड़ता नहीं उन पर, जो खानदानी हैं।
नई दौलत को जो पाते हैं, बदल जाते हैं।।

ये उसम और आसमां से बरसते शोले।
वक्त आने पे ये दिनमान भी ढल जाते हैं।।

बदलते दौर में, गैरों से क्या शिकवा है जब।
देखकर कामयाबी, अपने ही जल जाते हैं।।

बड़ा असर है ‘विपिन’ मां की इन दुआओं में।
मुश्किल लम्हात भी आसानी से टल जाते हैं।।
-विपिन शर्मा
रामपुर(उत्तर प्रदेश)
मोबा 9719046900

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