ग़ज़ल
नज़र तुमसे मिली समझा मुहब्बत का असर क्या है
तुझे देखा क़सम से सुन भुला बैठा क़मर क्या है/1
सुनी तारीफ़ थी मैंने तुझे देखा अधिक पाया
समझ आया अभी मुझको उधर क्या था इधर क्या है/2
दिया रब ने तुझे सबकुछ सफ़र आसान लगता है
नहीं दो जून की रोटी उसे पूछो सफ़र क्या है/3
लुटा दी जान हँसकर थी बड़ा बलवान था सच में
उसे मालूम था होती वतन हित की क़दर क्या है/4
अँधेरे भाग जाते हैं उजाले जब ज़मा होते
समझ औक़ात अपनी और उनका कद हुनर क्या/5
रुला निर्दोष को तुम चैन प्यारे पा नहीं सकते
बदी है ज़हर चखना मत चखा उसकी ख़बर क्या है/6
अना ‘प्रीतम’ करेगा वस्ल कर आओ कभी घर पर
मुहब्बत से बडी दुनिया में ताक़त की डगर क्या है/7
आर. एस. ‘प्रीतम’
शब्दार्थ- क़मर- चाँद, अना- गर्व, वस्ल- मिलन