ग़ज़ल
सफ़र आसान हो जाए मिले साथी ज़बर कोई
उसे मेरी मुझे उसकी रहे हरपल ख़बर कोई/1
बुरी नज़रें हमेशा घूरती हैं देख ख़ुश मुझको
कभी देखे तमन्ना है मुहब्बत की नज़र कोई/2
कभी सुंदर कभी गुमसुम कभी अद्भुत लगे हमको
दिखाए ज़िंदगी हर रंग जैसे हो क़मर कोई/3
चुराओ प्यार के नितदिन लम्हें हँसके हज़ारों तुम
सभी को दो सभी से लो सुहानी फिर क़दर कोई/4
तुझे पाया भरोसा तब हुआ रखता हुनर हूँ मैं
लगे अब ज़ीस्त में सपना हुआ पूरा इधर कोई/5
बहुत है तीरगी अब तो उजाला कर मिरे मालिक
दिखाई दे मुझे मंज़िल की रुहानी-सी डगर कोई/6
शिकायत को शिकायत से नहीं प्यार से जीतो
तभी ‘प्रीतम’ रुकेगा हर अदावत का समर कोई/7
आर. एस. ‘प्रीतम’
शब्दार्थ- क़मर- चंद्रमा, हुनर- कला, ज़ीस्त- ज़िंदगी, तीरगी- अँधेरा, रुहानी- आत्मिक, अदावत- शत्रुता, समर- युद्ध