ग़ज़ल
मिलेंगे रब उन्हें जिनकी दुवा दिल को छुआ करती
दुवा इंसानियत ख़ातिर हमेशा ही दुवा करती/1
जलाओ दीप घंटा भी बजाओ याद पर रखना
बिना भगवान गुन अपना नहीं पूजा हुआ करती/2
हृदय में भेद जिसके है नहीं इंसान दानव है
बुराई की सदा हस्ती मिटी सुनलो मिटा करती/3
अभी चोरी अभी लालच अभी रिश्वत सुहाती हैं
मगर तीनों ख़ुशी लूटें रुलाकर ही ज़ुदा करती/4
समझ आती नहीं दंभी अगर हम बन चलें यारों
मगर ये वक़्त की भाषा समझ की हर घटा करती/5
कभी हारो मगर समझो परीक्षा है यही अपनी
कमी समझी विजय की हर कहानी वो अदा करती/6
बिछाओ प्रीत की चादर मुहब्बत का अदब समझो
मिलन सबसे रहे अच्छा जवानी नव रचा करती/7
आर. एस. ‘प्रीतम’