ग़ज़ल
मुहब्बत ने मुहब्बत से नफ़ासत सीख ली प्रीतम
रहा बाकी नहीं कुछ अब वक़ालत सीख ली प्रीतम/1
हुए भावुक किसी का दर्द देखा जो हिफाज़त में
क़सम से आपने सच में शराफ़त सीख ली प्रीतम/2
भलाई कर सकें इंसान कहलाते वही तो हैं
गिरा लाचार संभाला जो हिक़मत सीख ली प्रीतम/3
कभी लूटा किसी को गर गिराया मान अपना ही
मुसीबत से किया निस्बत अदावत सीख ली प्रीतम/4
बुराई हार जाती है सुना हमने हमेशा ये
भलाई की तभी करनी इबादत सीख ली प्रीतम/5
मिटा दो चोर दिल का तुम करो चाहत भरी बातें
बहारों की चमन से फिर मुहब्बत सीख ली प्रीतम/6
हटा पर्दा बग़ावत का हृदय में प्यार भर ‘प्रीतम’
नज़ाकत से तभी समझो सदाक़त सीख ली ‘प्रीतम’/7
आर.एस. ‘प्रीतम’
शब्दार्थ- नफ़ासत- सुंदरता, हिक़मत- उत्तम युक्ति, निस्बत- लगाव/संबंध, अदावत- दुश्मनी, इबादत- पूजा, सदाक़त- सच्चाई