ग़ज़ल
ग़ज़ल
—————————————
1
जरा-सी बात पर हो तुम ख़फा
अच्छा नहीं लगता।
जुदा हो गमजदा होकर अजी
अच्छा नही लगता ।।
2
बहारें चूमती दामन न जाओ
छोडकर हमको।
पडे फीके सभी मौसम समां
अच्छा नहीं लगता।।
3
हुए मशहूर हम इतने जमाने की
नजर हम पर।
तुम्हे अब बेवफा कोई कहे अच्छा
नहीं लगता।।
4
खुदाया रूठ जाये तो मना लूँ मैं
कसम रब की।
करूँ सजदा यकीं मानों हमें
अच्छा नहीं लगता।।
5
मुहब्बत का सलीका यह भरोसा
तोड न पाये।
बगावत भीगती पलकें करे
अच्छा नहीं लगता।।
6
जुड़ी है हर खुशी तुमसे हकीक़त
यह खुदा जाने।
नुमाॅया होवफ़ा अपनी हमें अच्छा
नहीं लगता।।
7
तुम्हारा साथ था राही खुदाई
साथ थी मेरे।
करूँ मैं याद वो लम्हें जहाँ
अच्छा नहीं लगता।।
(अनिल कुमार राही)