#ग़ज़ल
#ग़ज़ल
नज़ाकत को शराफ़त से हरा दो तो तुम्हें जानें
जम़ीं बंजर में गुल कोई खिला दो तो तुम्हें जानें/1
सुनो बातें बनाने से उजाला हो नहीं सकता
अँधेरे में मशालें तुम जला दो तो तुम्हें जानें/2
यहाँ झूठे बहाने ही बनाते हैं सदा देखा
कभी सच आइना बनके दिखा दो तो तुम्हें जानें/3
तुम्हें हमसे हमें तुमसे मुहब्बत हो गई सच में
नज़र सीधी ज़रा हँसकर मिला दो तो तुम्हें जानें/4
तुम्हारे ज़ख्म देखे हैं बड़ी तकलीफ़ में हो तुम
वजह इनकी अगर दिल से बता दो तो तुम्हें जानें/5
तुम्हारी भूल भी तुमको सिखाती है अगर समझो
जमी जो धूल आँखों में हटा दो तो तुम्हें जाने/6
कभी ‘प्रीतम’ ग़लत राहें बता सकता नहीं भूले
ज़रा विश्वास इतना भी जता दो तो तुम्हें जानें/7
आर. एस.’प्रीतम’