ग़ज़ल
हर कदम पर ख़ता करे कोई ।
ज़ुल्म सहके दुआ करे कोई ।
दिल्लगी ने तो दिल तोड़ दिया ,
अब प्यार से अदा करे कोई ।
है आजकल बेवफ़ाई का दौर ,
अच्छा लगेगा वफ़ा करे कोई ।
यही दुनिया की रस्म है शायद ,
फंसता कोई , ख़ता करे कोई ।
हम भी जी लेंगे और कुछ लम्हें ,
क़ाश थोड़ी-सी वफ़ा करे कोई ।
याद में कोई अब भी आता है ,
उसको कैसे दिल सेे ज़ुदा करे कोई ?
सामने हमारे रहता है अक़्सर ,
और हमीं से दग़ा करे कोई ।
ऐ “निधि” कोई है फुटपाथों पे ,
और महफिलों में मज़ा करे कोई ।
निधि मुकेश भार्गव