*ग़ज़ल*
ग़ज़ल
मुहब्बत है मगर उसको बता सकता नहीं हूँ मै
बनी तस्वीर दिल में है दिखा सकता नहीं हूँ मैं/1
लिखी नफ़रत मिरे हिस्से किसे उल्फ़त दिखाऊँ मैं
बसाना चाहता दिल में बसा सकता नहीं हूँ मैं/2
किये वादे सभी टूटे नज़र कैसे मिलाऊँ मैं
रही मज़बूरियाँ भी जो जता सकता नहीं हूँ मैं/3
कफ़न या ज़िंदगी चाहूँ करूँ ये फ़ैसला कैसे
रुलाना भी नहीं कोई हँसा सकता नहीं हूँ मै/4
खड़ा मँझधार मैं तड़फूँ लहर हर ज़ख्म देती है
मगर आवाज़ भी देखो उठा सकता नहीं हूँ मैं/5
चमन के फूल मसलूँ क्या बहारें फिर खिलाएंगी
किसी मधुमास को इक पल भुला सकता नहीं हूँ मैं/6
उसूलों में रहा हूँ तो वक़ालत भी करूँगा सुन
किसी के दर्द से नज़रें हटा सकता नहीं हूँ मैं/7
सभी लालच लिए हँसते बुराई पर रुलाती है
कभी सच से अरे दामन बचा सकता नहीं हूँ मैं/8
लगा ‘प्रीतम’ मुझे अपना मुहब्बत हो गई दिल से
किसी भी हाल में उसको रुला सकता नहीं हूँ मैं/9
आर. एस.’प्रीतम’