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29 Nov 2023 · 1 min read

*ग़ज़ल*

ग़ज़ल

मुहब्बत है मगर उसको बता सकता नहीं हूँ मै
बनी तस्वीर दिल में है दिखा सकता नहीं हूँ मैं/1

लिखी नफ़रत मिरे हिस्से किसे उल्फ़त दिखाऊँ मैं
बसाना चाहता दिल में बसा सकता नहीं हूँ मैं/2

किये वादे सभी टूटे नज़र कैसे मिलाऊँ मैं
रही मज़बूरियाँ भी जो जता सकता नहीं हूँ मैं/3

कफ़न या ज़िंदगी चाहूँ करूँ ये फ़ैसला कैसे
रुलाना भी नहीं कोई हँसा सकता नहीं हूँ मै/4

खड़ा मँझधार मैं तड़फूँ लहर हर ज़ख्म देती है
मगर आवाज़ भी देखो उठा सकता नहीं हूँ मैं/5

चमन के फूल मसलूँ क्या बहारें फिर खिलाएंगी
किसी मधुमास को इक पल भुला सकता नहीं हूँ मैं/6

उसूलों में रहा हूँ तो वक़ालत भी करूँगा सुन
किसी के दर्द से नज़रें हटा सकता नहीं हूँ मैं/7

सभी लालच लिए हँसते बुराई पर रुलाती है
कभी सच से अरे दामन बचा सकता नहीं हूँ मैं/8

लगा ‘प्रीतम’ मुझे अपना मुहब्बत हो गई दिल से
किसी भी हाल में उसको रुला सकता नहीं हूँ मैं/9

आर. एस.’प्रीतम’

Language: Hindi
1 Like · 240 Views
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