#ग़ज़ल
#ग़ज़ल
■ हम नहीं होंगे…
【प्रणय प्रभात 】
★ अगर ये ज़ख़्म ना होंगे तो फिर मरहम नहीं होंगे।
बड़ी बेरंग होगी ज़िन्दगी, जब ग़म नहीं होंगे।
★ भरी महफ़िल उठाते हैं कसम तर्के-तआल्लुक़ की,
जहां तेरे क़दम होंगे, वहाँ अब हम नहीं होंगे।
★ तुम्हारी सोच जिस्मानी, मेरे जज़्बात रूहानी,
हज़ारों कोशिशों से फ़ासले ये कम नहीं होंगे।
★ यहां पे बैठ के रोना-बिलखना छोड़ दे प्यारे,
ये टीले रेत के हैं, आंसुओं से नम नहीं होंगे।
★ यकीं होता नहीं लेकिन, यकीं करना ही पड़ता है,
गुलों के बीच गुल होंगे, यहाँ पे बम नहीं होंगे।
★ जले घर देखते फिरते हो, बनकर के तमाशाई,
तुम्हारी बस्तियों में क्या कभी मातम नहीं होंगे?
★ ये सूखेंगे मगर आवनी निशानी छोड़ जाएंगे।
ये क़तरे आंसुओं के हैं कभी शबनम नहीं होंगे।।
★ ज़हन से क़ल्ब तक उभरें तो कोई बात है प्यारे!
क़दम साहिल की भीगी रेत पे कायम नहीं होंगे।।
★ उजालों में उपजते हैं उजालों में लिपटते हैं।
वो साये हैं अंधेरों में कभी हमदम नहीं होंगे।।
■प्रणय प्रभात■
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)