ग़ज़ल
कौन किसको क़रीब रक्खेगा
इसका लेखा नसीब रक्खेगा
मुझको मिस्ल-ए-हबीब रक्खेगा
तुझसे बेहतर रक़ीब रक्खेगा
लोग अपने ही ग़म से हैं आजिज़
कौन सर पे सलीब रक्खेगा
नेकियाँ कितनी कौन करता है
ये शुमारी हसीब रक्खेगा
कोई बाज़ों की जंग है दुनिया
घर में कौन अंदलीब रक्खेगा
बाप रोयेगा ख़ून के आँसू
जब तू घर पे जरीब रक्खेगा
तू कोई वास्ता न रख ‘माहिर’
हमसे रिश्ता रक़ीब रक्खेगा
प्रदीप ‘माहिर’
रामपुर (उ0 प्र0)
मिस्ल-ए-हबीब= दोस्त/प्रेमपात्र की तरह
आजिज़= तंग/परेशान
सलीब= सूली (जिस पर ईसा को चढ़ाया था)
हसीब= हिसाब रखने वाला (ईश्वर)
अंदलीब= बुलबुल
जरीब= ज़मीन नापने की चेन
रक़ीब= प्रेम में प्रतिस्पर्धा करने वाला