ग़ज़ल
#ग़ज़ल
करे चुगली उजाड़े घर उसे इंसान मत कहना
लिए दलदल गुनाहों का उसे मैदान मत कहना/1
बुराई कर किसी की हम अगर औक़ात भूले जो
जलालत है हमारी ये इसे सम्मान मत कहना/2
कभी अपना कभी उनका ज़रा-सा ख़्याल रख लेना
मिले शोहरत मगर ख़ुद को कभी भगवान मत कहना/3
कहीं सपने कहीं अपने अगर दम तोड़ देते हैं
अकेले ही चलो हँसकर सफ़र अनजान मत कहना/4
मुहब्बत से मुहब्बत को अगर जीते यहाँ कोई
वही है मर्द उसको तुम कभी नादान मत कहना/5
किसी का दिल जलाकर भी जलोगे तुम तन्हाई में
जहाँ नफ़रत सुनाए धुन उसे सुर गान मत कहना/6
लिखे ‘प्रीतम’ इबादत वो ज़माना झूम जाए सुन
बड़ी हसरत यही दिल की इसे गुणगान मत कहना/7
#आर.एस. ‘प्रीतम’