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7 Feb 2024 · 1 min read

नव बहूँ

छोड़ बाबुल का अँगना
नव घर में प्रवेश पाती
हर नयें रिश्ते प्रेम भाव से अपनाती
चूड़ी- पायल की खन-२ से घर आँगन चहकाती
लाज़ शर्म छोड़ अपना हर कर्तव्य निभाती
जब नव बहूँ घर आती।।

बिखरें फूलों को जोड़कर माला है बनाती
रोज सवेरे उठ भक्ति के गीत गुण वो गाती
अपने बड़ो के आगे नमन कर शीश वो झुकाती
जब नव बहूँ घर आती।।
*********************
😇 डॉ॰ वैशाली✍🏻

Tag: Poem
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