ग़ज़ल
ग़ज़ल
किये वादे निभाए जो उसे इंसान कहता हूँ
भुला दे वक़्त बदले जब उसे शैतान कहता हूँ//1
ज़रा-सी धूप ही तो बर्फ़ को पिंघला यहाँ देती
करे जो दंभ ख़ुदपर जो उसे अनजान कहता हूँ//2
कहीं तू है कहीं मैं हूँ मगर तन्हा नहीं हैं हम
मैं चंदन हूँ तू खुशबू है भरे मैदान कहता हूँ//3
बना दिल से चला वो ही यहाँ रिश्ता सितारो तक
हवश जिसमें बसी होती उसे अज्ञान कहता हूँ//4
मेरे श्यामा मेरी राधा सदा तक़दीर लिखते हैं
दिया जो भी मुझे अब तक बड़ा सोपान कहता हूँ//5
जवानी की कहानी में मुहब्बत हो गई मुझको
मेरा माशूक़ जिसको मैं तो हिंदुस्तान कहता हूँ//6
सुनाऊँ बात सच्ची मैं करूँ ‘प्रीतम’ इबादत भी
मिटाए दर्द औरों का उसे भगवान कहता हूँ//7
#आर.एस.’प्रीतम’