ग़ज़ल
एक पत्ते ने कहा ,
मै ही सांसो की दवा ।
पाप सब कटते रहे,
दर्द ने जब- जब छुआ ।
एक पत्थर ने कहा,
मुझको भी मूरत बना ।
नीम का वो पेड था,
वैद्य वो सबका बना।
रेशमी रूमाल को ,
कीट ने खाकर बुना।
कुंआ लबालब रहा ,
घड़ो ने कितना लिया ।
वो मुकद्दर था मेरा ,
खोजने पर मिल गया।