ग़ज़ल
ग़ज़ल
बेशक़ दुनियादारी रख
लेकिन सीरत प्यारी रख
दुनिया कब जीने देगी
थोड़ी सी मक्कारी रख
जाने कब काम आ जाएं
चोरों से भी यारी रख
भूखा ना लौटे दर से
दिल में वो दिलदारी रख
जाने कब आए सम्मन
जाने की तैयारी रख
खाक़ वतन की चंदन है
इससे मत गद्दारी रख
आने न सके नफ़रत प्रीतम
दिल में चार दिवारी रख
प्रीतम श्रावस्तवी