ग़ज़ल
साथ मिले अपनों का तो,दुख कम होने लगता है।
यादों के मौसम में मन, पुरनम होने लगता है।।
भीड़ भरे चौराहे पर,जब भी नज़र घुमाता हूँ,
दुनिया है मशरूफ बहुत, ये भ्रम होने लगता है।
खोई छाँव दरख्तों की,फूलों से खुशबू गायब,
ऐसे ही बदलावों को ,सुन गम होने लगता है।
जब भी वतनपरस्ती में,लोग फना हो जाते हैं,
श्रद्धा में उनके आगे ,सर खम होने लगता है।
तू सबका सब तेरे हैं, सुनता आया बचपन से,
दर पर जा देखा तो शक,हमदम होने लगता है।
डाॅ बिपिन पाण्डेय