मोहब्बत जिससे हमने की है गद्दारी नहीं की।
मोहब्बत जिससे हमने की है गद्दारी नहीं की।
हमेशा हक बयानी की है मक्कारी नहीं की।
फाकों में गुजारी जिंदगी मैंने फकीरी की।
कलम को बेचकर मैंने तरफदारी नही की।
वतन की मिट्टी जिसकी मां नहीं है।
मां के दूध से समझो वफादारी नही की।
जो मेरा है वह मेरे पास आएगा।
यही तो सोचकर हमने मगजमारी नहीं की।
किसी को छेड़ते हैं ना किसी को छोड़ते हैं हम।
किसी मजलूम पर भारत ने बमबारी नहीं की।
जुबां पर बात है मेरे वही बात है दिल में।
ग़ज़ल लिखने से पहले मैंने कोई तैयारी नहीं की।
जमीर बेच के जिसने खरीदा है रुतबा।
गुलामी की है सगीर उसने खुद्दारी नहीं की