ग़ज़ल
ग़ज़ल ———
तेरा हर इक सितम गवारा है ।
तेरे बिन अब कहाँ गुज़ारा है।।
तुझसे रिश्ता मैं तोड़ लूं कैसे,
मेरे जीने का तू सहारा है ।।
चाँद के साथ चाँदनी होती, देखा तूने तो यह नज़ारा है ।।
तू तो कहता था प्रभु ने मेरे,
तुझको मेरे लिए उतारा है ।।
तेरा मेरा नहीं है कुछ “ममता”
जो ये सुख दुख है सब हमारा है।।
डाॅ ममता सिंह
मुरादाबाद
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