ग़ज़ल
माँ मेरी जब उदास होती है
वो मेरे दिल के पास होती है
भूख को अपने बाँटती सबसे
खा लो कहती है ख़ास होती है
रात भर नीद से वो लड़ती है
जगा सबको निराश होती है
गुनगुना कर के देखना पीछे
अपने दिन की तलाश होती है
अपने बेटों की सोचती है ‘महज़’
खुशी की जब भी आस होती है