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17 Oct 2020 · 1 min read

ग़ज़ल

ग़ज़ल

हसनैन आक़िब

तेरे नज़दीक ही बैठा हूं मैं ।
लोग कहते हैं कि तन्हा हूं मैं ॥

उस के माथे पे शिकन आई है
उस ने देखा है कि अच्छा हूं मैं ॥

कोई क्या कहता है इस को छोड़ो
फ़ैसला तुम करो, कैसा हूं मैं ॥

ज़िन्दगी कुछ भी नहीं तेरे बगै़र
बस इसी बात को समझा हूं मैं ॥

सोच कर इश्क़ नहीं होता कभी
कल कहा, आज भी कहता हूं मैं ॥

तुझ को पाने में जो नाकाम रहूं
बस यही सोच के डरता हूं मैं ॥

दिल में एक टीस उठी है आक़िब
अब भी उस को नहीं भूला हूं मैं ॥

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