ग़ज़ल
जाति-पाति के नाम पर आग लगाते हैं
साफ-पाक दामन पर दाग लगाते हैं
पूरा जीवन बदहाली में ही गुज़र गया
सारी उपलब्धियां मरने के बाद लगातें है
उन्हें आदमी की जरा भी परख नहीं
कौवे के पंख पे पर सुर्खाब लगाते हैं
किसानों को अन्न ही उगाने दीजिए कुछ
कई तो उनके जीवन में कांटों के बाग़ लगाते हैं
जिन्दगी कभी रोके कभी हॅस के गुजारे” नूरी”
अच्छे बुरे कर्म तो पिछे से आवाज लगाते हैं
नूरफातिमा खातून “नूरी”
29/4/2020